भोजपुरी फ़िल्म जगत के तीसरे चरण की शुरुवात काफी धूम धड़ाके के साथ हुई थी क्योंकि इस दौरान कई फिल्मो ने भोजपुरी के लाखो कमाई के आंकड़े को करोडो में बदल दिया था और शुरुवात की लगभग हर फिल्मो की कम से कम लागत तो वसूल हो ही जाती थी । यह वह दौर था जब रवि किशन और मनोज तिवारी की फिल्में अच्छा व्यवसाय कर रही थी । एक तरफ रवि किशन की पंडित जी बताई ना बियाह कब होइ धूम मचा रही थी तो दुसरी ओर ससुरा बड़ा पैसे वाला कमाई का रिकॉर्ड तोड़ रही थी । यानि अचानक से भोजपुरी फ़िल्म जगत पर पैसो की बरसात सी होने लगी । फिर तो भोजपुरी फ़िल्म जगत में बहार और फिल्मो की बाढ़ आनी शुरू हो गयी । हालात तो यहाँ तक आ गयी की कभी पुरे साल में मात्र एक दर्जन फ़िल्म देने वाली भोजपुरी फ़िल्म जगत ने साल 2005 में कुल 76 फिल्में दी । ये उफान थमता उस से पहले ही उस दौर के रिकार्ड तोड़ सफलता वाले एलबम निरहुआ सटल रहे से चर्चा में आये विरहा गायक दिनेश लाल यादव निरहुआ को ससुरा बड़ा पैसेवाला के निर्माता सुधाकर पांडे ने बतौर अभिनेता भोजपुरिया परदे पर उतार दिया । निरहुआ की पहली फ़िल्म भले ही कुछ कमाल ना दिखा पाई लेकिन जल्द ही उनकी फ़िल्म निरहुआ रिक्शावाला ने कामयाबी की नई कहानी लिख दी। इसके अलावा देवरा बड़ा सतावेला ने भी रिकॉर्ड तोड़ बिजनेस की। इन फिल्मों में गुमनामी में जी रही भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्रीज को भाषायी सिनेमा की भीड़ में अच्छी पायदान पर ला दिया। नतीजा यह रहा की बड़े बड़े फिल्म मेकर्स का ध्यान इस उपेक्षित फिल्म जगत की ओर गया। बीते जमाने के महानायक ट्रेजडी किंग दिलीप कुमार ने भी बतौर निर्माता भोजपुरिया मैदान में उतरने का फैसला किया और उन्होंने रवि किशन नगमा के साथ अब ता बन जा सजनवा हमार का निर्माण किया। बॉलीवुड के बड़े मेकर्स जी पी सिप्पी जिन्होंने शोले जैसी फिल्म का निर्माण ने भी रविकिशन व नगमा के साथ माई त बस माई बाड़ी का निर्माण किया। इसके बाद तो बड़े निर्माताओं की लाइन लग गयी। छोटे परदे की बड़ी प्रोडक्शन हाउस कॉन्टिलो फिल्म्स ने तो भोजपुरी फिल्मों के निर्माण के लिए श्री जगन्नाथ एंटरटेनमेंट नाम की नयी प्रोडक्शन हाउस खोल कर सैयां से सोलह सिंगार नाम की फिल्म का निर्माण किया। बॉलीवुड के बड़े नाम इंद्र कुमार ने उसी दौरान सब गोलमाल है नाम से एक भोजपुरी फिल्म का निर्माण किया। सलमान खान के साथ लांच हुई अभिनेत्री भाग्यश्री ने उस दौर में निर्देशक जगदीश शर्मा की फिल्म उठाई ले घूंघटा चाँद देख ले से भोजपुरिया परदे पर कदम रखा था इस फिल्म में उनके हीरो थे रवि किशन . पहली फिल्म की जबरदस्त सफलता के बाद जगदीश शर्मा ने उन्हें मनोज तिवारी के साथ देवा में कास्ट किया। दो दो फिल्मों में अभिनय कर चुकी भाग्यश्री ने उसी दौरान फिल्म निर्माण की घोषणा कर दी और अपने दोनों हीरो रवि किशन और मनोज तिवारी के साथ एगो चुम्मा दे द राजा जी का निर्माण कर दिया। इसके बाद कॉर्पोरेट कंपनी महिंद्रा एन्ड महिंद्रा ने भी अचानक भोजपुरी फिल्म निर्माण की घोषणा की और अभय सिन्हा के साथ पांच फिल्मों का करार किया लेकिन बनी मात्र एक फिल्म हम बाहुबली । जाने माने निर्माता निर्देशक रमेश सिप्पी ने भी निरहुआ के साथ मृत्युंजय नाम की भोजपुरी फिल्म का निर्माण किया। अमेरिका की फिल्म निर्माण कंपनी पन फिल्म्स ने भी रविकिशन को लेकर ज़रा देब दुनिया तोहरा प्यार में की निर्माण की। तेलगु में महेश बाबू को रातो रात सुपर स्टार बनाने वाली फिल्म दुकद्दू के निर्माता ने भी भोजपुरी फिल्म बनाने का फैसला किया और अपनी सहयोगी कंपनी अलटूरा फिल्म्स के बैनर तले रणवीर नाम की फिल्म का निर्माण किया। यही नहीं साउथ की जानी मानी कंपनी वेंकटेश फिल्म्स ने भी निरहुआ के साथ भोजपुरी फिल्म का निर्माण किया। ये कुछ फिल्में तो उदहारण मात्र हैं और भी कई फिल्मों के निर्माण की घोषणा हुई , कुछ शुरू होकर अधर में लटकी तो कुछ घोषणा मात्र ही साबित हुई। बॉलीवुड की बड़ी अदाकारा प्रियंका चोपड़ा ने अपनी फिल्म निर्माण कंपनी पर्पल पेबल पिक्चर्स के बैनर तले निरहुआ के साथ बम बम बोल रहा है काशी का निर्माण किया ।
सवाल उठना लाजमी है की इतनी बड़ी बड़ी कम्पनिया और बड़े नाम वाले लोगो के पहले जुड़ने और फिर मुंह मोड़ लेने की वजह क्या है ? अगर इन सारी फिल्मों का आकलन करें तो मामले को समझना आसान है . ये सारी कम्पनिया या लोग बिना भोजपुरी व इसके मार्केट को समझे सीधे मैदान में कूद पडी। दर्शक का मूड या रुझान तो अलग मुद्दा है , उनका उद्देश्य फिल्म बनाना और पैसे कमाना मात्र था और सबसे बड़ी बात वो खुद नहीं आये बल्कि उनको लाखो लगाओ और करोडो कमाओ का सपना दिखा कर लाया गया और जब उन्होंने कदम डाल दिया तब हकीकत पता चली की उन्होंने बेवकूफी भरा कदम उठा लिया है। जिनके सामने बड़े बड़े स्टार्स अपना सर झुकाते थे यहां आकर छुटभैया ब्रोकर और वितरक भी ज्ञान बघाडने लगे नतीजा यह हुआ की उन्होंने इस से खुद को दूर रखना ही उचित समझा। यानि उनके साथ बिहार की वो लोकोत्ति चरितार्थ हुई - जातो गमाए और भातो ना खाये। यहां प्रियंका चोपड़ा की फिल्म बम बम बोल रहा है काशी का जिक्र करना आवश्यक है क्योंकि उन्होंने काफी रिसर्च के बाद भोजपुरी फिल्म निर्माण से अपने प्रोडक्शन हाउस की शुरुवात की है और अब उनकी अगली फ़िल्म भी शुरू हो रही है । कुल मिलाकर यही कहा जा सकता है की बिना पिच का जायजा लिए फटाफट क्रिकेट के शौक़ीन खिलाडियों को भोजपुरी कभी रास नहीं आएगी। यहाँ शतक वही बनाएगा जो पिच और मौसम का रुख देखकर बल्लेबाजी करेगा नहीं तो आएंगे उत्साह से जाएंगे बैरंग।
सवाल उठना लाजमी है की इतनी बड़ी बड़ी कम्पनिया और बड़े नाम वाले लोगो के पहले जुड़ने और फिर मुंह मोड़ लेने की वजह क्या है ? अगर इन सारी फिल्मों का आकलन करें तो मामले को समझना आसान है . ये सारी कम्पनिया या लोग बिना भोजपुरी व इसके मार्केट को समझे सीधे मैदान में कूद पडी। दर्शक का मूड या रुझान तो अलग मुद्दा है , उनका उद्देश्य फिल्म बनाना और पैसे कमाना मात्र था और सबसे बड़ी बात वो खुद नहीं आये बल्कि उनको लाखो लगाओ और करोडो कमाओ का सपना दिखा कर लाया गया और जब उन्होंने कदम डाल दिया तब हकीकत पता चली की उन्होंने बेवकूफी भरा कदम उठा लिया है। जिनके सामने बड़े बड़े स्टार्स अपना सर झुकाते थे यहां आकर छुटभैया ब्रोकर और वितरक भी ज्ञान बघाडने लगे नतीजा यह हुआ की उन्होंने इस से खुद को दूर रखना ही उचित समझा। यानि उनके साथ बिहार की वो लोकोत्ति चरितार्थ हुई - जातो गमाए और भातो ना खाये। यहां प्रियंका चोपड़ा की फिल्म बम बम बोल रहा है काशी का जिक्र करना आवश्यक है क्योंकि उन्होंने काफी रिसर्च के बाद भोजपुरी फिल्म निर्माण से अपने प्रोडक्शन हाउस की शुरुवात की है और अब उनकी अगली फ़िल्म भी शुरू हो रही है । कुल मिलाकर यही कहा जा सकता है की बिना पिच का जायजा लिए फटाफट क्रिकेट के शौक़ीन खिलाडियों को भोजपुरी कभी रास नहीं आएगी। यहाँ शतक वही बनाएगा जो पिच और मौसम का रुख देखकर बल्लेबाजी करेगा नहीं तो आएंगे उत्साह से जाएंगे बैरंग।
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