Wednesday, August 17, 2016

उदय वाणी - प्रचार की अहमियत से बेखबर

कहा जाता है की फिल्म और उसकी पब्लिसिटी के बीच चोली दामन का साथ है।  हॉलीवुड , बॉलीवुड सहित भोजपुरी को छोड़ सभी फिल्म जगत इस बात से बखूबी वाकिफ हैं।  पिछले शुक्रवार रिलीज़ हुई हिंदी की दो बड़ी फिल्मो रुस्तम और मोहनजो दाडो के बजट पर एक नज़र डालते हैं।  रुस्तम  का बजट ६५ करोड़ रूपये है इसमें २० करोड़ की पब्लिसिटी का बजट शामिल है। मोहनजो दाडो का बजट १४० करोड़ का है जिसमे ३५ करोड़ की पब्लिसिटी का बजट शामिल है। मैं इन फिल्मो की तुलना भोजपुरी फिल्मो से कतई नहीं कर रहा , इसका उदहारण देने का मेरा मकसद सिर्फ और सिर्फ पब्लिसिटी के महत्त्व को बताना है।  हिंदी की हर फिल्मो के बजट में पब्लिसिटी का अपना एक बजट होता है लेकिन भोजपुरी में स्थिति कुछ अलग है।  मैं यहाँ किसी निर्माता निर्देशक का नाम लेना नहीं चाहूंगा लेकिन आप किसी भी प्रोड्यूसर के बजट के कॉपी पर नज़र डालेंगे तो वहाँ पब्लिसिटी के नाम पर पी आर ओ और पब्लिसिटी  डिजायनर का ही बजट होगा।  कुछ बड़े प्रोड्यूसर के बजट में तो पी आर ओ का बजट भी नहीं होता है क्योंकि उन्हें पता है की उनकी फिल्म के कलाकार अपने अपने पी आर ओ से न्यूज़ तो बनाएंगे ही तो पी आर ओ रखने की जरुरत ही क्या है ? अपने हिसाब से वो सही भी हैं लेकिन अगर हम इसका विश्लेषण करें तो सारा माजरा समझ में आ जाता है।  एक निर्देशक का कहना है - पब्लिक तो स्टार और डायरेक्टर का नाम देख कर सिनेमा हॉल में आता है।  उनकी बात से मैं सहमत हूँ लेकिन अगर यही है तो सारी फिल्मो को चलनी चाहिए ? फिल्म पब्लिसिटी से लोगो के दिलो दिमाग पर छाता है।  इसी साल जून में रिलीज़ हुई भोजपुरी की बहुचर्चित फिल्म बम बम बोल रहा है काशी की पब्लिसिटी में निर्मात्री प्रियंका चोपड़ा और डॉ मधु चोपड़ा ने कोई कसार नहीं छोड़ी।  आपको जानकार आश्चर्य होगा की इस फिल्म के पब्लिसिटी का बजट फिल्म के बजट का तीस प्रतिशत था।  अब उनकी अगली फिल्म की घोषणा हो रही है।  शूटिंग का डेट फिक्स नहीं है लेकिन पब्लिसिटी प्लान उनके पास बन कर तैयार है।  कोई भी फिल्म मात्र एक कारण से नहीं चलती है उसके कई कारण होते हैं उनमे एक बड़ा कारण पब्लिसिटी भी है। भोजपुरी फिल्मो से जुड़े लोग मान  कर चलते हैं  की उनका दर्शक वर्ग सिमित है , अनपढ़ है , छोटे तबके के श्रमिक हैं लेकिन अगर आपके पब्लिसिटी से इस वर्ग के इतर अगर कुछ दर्शक आते हैं तो आप एक नया दर्शक बना रहे हैं।  पब्लिसिटी के साथ अगर उन्हें अच्छी  फिल्मे भी मिलती है तो भविष्य में एक नया दर्शक वर्ग आपके सामने होगा।  अगर आपकी फिल्म को पोर्न फिल्म कहा जाता है तो उसका जवाब आपको अच्छी फिल्म बना कर और उसकी पब्लिसिटी करके देना होगा।  अक्सर इस फिल्म जगत में  खोदा पहाड़ और निकली चुहिया वाली बात होती है।  उसे गलत साबित करने के लिए आपको खुद आगे बढ़ना होगा।  पब्लिसिटी के नाम पर मात्र पी आर ओ को नियुक्त कर और रिलीज़ से पहले सुपर हिट की पोस्टर बना कर हम भोजपुरी से पूर्वाग्रह रखने वाले किसी भी व्यक्ति या संस्था को जवाब नहीं दे सकते। आजकल पब्लिसिटी का एक नया चलन शुरू हुआ है।  पब्लिसिटी के नाम पर यु ट्यूब के अलग अलग चैनल के दस लोग आते हैं और आपके इंटरव्यू से अपनी कमाई करते हैं। वो अपना व्यवसाय कर रहे हैं आप अपनी संपत्ति  तो उन्हें दे ही रहे हैं साथ में आने जाने खाने पिने का खर्च भी।  अगर आप खुद का चैनल बना कर उनपर यह सब करेंगे तो फायदा सिर्फ और सिर्फ आपको होगा।  यही बात कलाकारों को भी सोचनी चाहिए।  उनकी आवाज़ , उनकी अदा से कोई और कमाई क्यों करें ? अब जरुरत है हमें भोजपुरी फिल्मो की साकारात्मक पब्लिसिटी की क्योंकि नाकारात्मक पब्लिसिटी हम आपस में एक दूसरे की कर के पूर्वाग्रह से ग्रसित लोगो को फायदा पहुचा रहे हैं। अब ज़रूरत है पब्लिसिटी की अहमियत को पहचानने की क्योंकि भोजपुरी फिल्मो का सबसे बड़ा दुश्मन अल्बम अपनी पैर काफी पसार चुका है। करोडो की तादात में लोग गूगल पर  रोज़ाना  भोजपुरी फिल्म सर्च करते हैं और फिल्मे देखते हैं।  क्या हम उन्हें सिनेमा हॉल तक नहीं ला सकते ? मुश्किल कुछ भी नहीं होता बस जरुरत है साकारात्मक सोच और साकारात्मक पब्लिसिटी की।
Uday Bhagat

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