कुछ साल पहले की बात है एक अवार्ड शो के होस्ट आदित्य नारायण ने स्टेज पर मौजूद अक्षय कुमार की तारीफ़ की शुरुआत उनकी किसी फ़िल्म के हिट होने की बधाई से की । अक्षय ने पूरी बात सुनी और जब उनके बोलने की बारी आई तो पहला ही शब्द था की जिस फ़िल्म के हिट होने की बधाई तुमने दी वो फ्लॉप फ़िल्म है । अक्षय कुमार की इस साफगोई पर दर्शको ने ताली बजा कर स्वागत किया । कल्पना कीजिये क्या भोजपुरी में ऐसा संभव है ? इसका उत्तर ढूंढना मुश्किल नहीं है । दरअसल भोजपुरी का ये पूरा मामला साकारात्मक एकता के अभाव के कारण है । कहने को तो बॉलीवुड सहित हर इंडस्ट्रीज में सितारों का अपना अपना गुट है पर काम में यह गुटबाजी कभी आड़े नहीं आती । स्टार सिस्टम हर फ़िल्म जगत में है और निर्माता निर्देशक उसी पैमाने पर चलते हैं लेकिन वहा टांग खींचू प्रवृति नहीं है । इसके उलट भोजपुरी फ़िल्म जगत कई सिस्टम से काम करता है लेकिन घेराबंदी इसका प्रमुख सिस्टम है । मुम्बई के फिल्मकार निर्माता निर्देशक से लेकर पटना के वितरक तक इसी घेराबंदी के अंग है । किसको कहा कब पटकनी देनी है किसको कब आगे करना है इसी निति पर पूरा सिस्टम काम करता है । मतलब साफ़ है की जिस एकता की यहाँ बात हो रही है उसका अभाव है । कुछ साल पहले तक हिंदी की ट्रेड पत्रिकाये भी इसी घेरा बंदी का हिस्सा थे लेकिन सोशल मीडिया के प्रभाव ने उनकी शक्ति क्षीण कर उन्हें इस से दूर कर दिया । सवाल उठता है जितनी एकता हमारे नकारात्मक सोच में है उतनी साकारात्मक सोच में क्यों नहीं । कई फ़िल्मी कार्यालय किसी बड़े स्टार की फ़िल्म के रिलीज़ के बाद अखाड़ा में तब्दील हो जाता है । कुछ पक्ष में तो कुछ विपक्ष में झंडा बुलंद किये रहते हैं । मुद्दा दो भागो में बंटा होता है फ़िल्म हिट है या फ्लॉप । फ़िल्म अच्छी है या बुरी इसपर कोई चर्चा नहीं करता । आलोचक और आलोचना चर्चा को मजबूती देता है और इससे कई अच्छी बातें निकल कर आती है परंतु भोजपुरी में आलोचना सिर्फ परिस्थितियों को देखकर की जाती है । फिल्में चलना ना चलना स्वाभाविक प्रक्रिया है लेकिन इसे नाकारात्मक रूप देना किसी भी तरह से उचित नहीं है । दुनिया का कोई निर्देशक ऐसा नहीं है जो हर फ़िल्म हिट देने का दावा कर सके । भोजपुरी में तो ऐसे एक भी निर्देशक ऐसे नहीं है जिन्होंने पचास प्रतिशत हिट फिल्में दी हो ? कहने को तो कई निर्देशक आपको मिल जाएंगे जो दावा करते मिल जाएंगे की उनकी हर फ़िल्म हिट है । वो न्यूज़ भी दिखा देंगे जिसमे लिखा मिल जाएगा की उनकी फ़िल्म ने भोजपुरी का इतिहास बदल दिया है पर हकीकत इंडस्ट्रीज से जुड़े सबको पता होता है । सच को स्वीकारना चाहिए और सोच में भी बदलाव लाने की जरुरत है । भोजपुरी फ़िल्म जगत में एकता तो है पर सही दिशा में नहीं है । यहाँ एक दूसरे को नीचा दिखाने में ही एकता नज़र आती है । अगर साकारात्मक दिशा में एकता हो तो निसंदेह भोजपुरी फ़िल्म जगत का भला होगा । आज हालात ये है की पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर अगर कोई असंतुष्ट लोग कुछ बयान देते हैं और वो किसी वेबसाइट , सोशल मीडिया में या किसी चवन्नी छाप वाली जगह कुछ छप जाता है तो उसे चटकारे ले लेकर पढ़ेंगे , लोगो को सुनाएंगे और उसे इधर उधर फॉरवर्ड भी करेंगे । इससे बचने की जरुरत है अगर ऐसी कुछ गलतबयानी आये तो उसका एकजुट होकर विरोध होना चाहिए ना की गलत बात बोलने वालो का पीठ थपथपाना चाहिए । हम आपस में एक हैं बस नकरात्मक एकता की इस दिशा को साकारात्मक रुख देने की आवश्यकता है ।
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