Thursday, August 11, 2016

अपनी चाल क्यों नहीं चलते हम ?

भोजपुरी फिल्मो के गिरते स्तर पर चर्चा करना आम बात है । हर महीने मुझे व्यतिगत रूप से ऐसे कॉल आते ही हैं किसी ना किसी अखबार से की मैं भोजपुरी के गिरते स्तर पर आर्टिकल लिख रहा हूँ कुछ कलाकारों का नंबर दीजिये जिनसे इस मुद्दे पर उनकी राय ले सकूँ । ऐसे फोन करने वाले शत प्रतिशत लोगो ने कभी भी कोई भोजपुरी फ़िल्म नहीं देखी होती है । भोजपुरी का नाम आते ही उनके जेहन में यु ट्यूब पर मौजूद गंदे वीडियो अल्बम ही कौंधता रहता है । एक अहम् सवाल यहाँ उठना लाजमी है की आखिर उन्हें क्यों लगता है की भोजपुरी का स्तर गिरा है या गिर रहा है  । आज से 15 साल पहले तक जिस फ़िल्म जगत में 40 लाख बजट की कोई फ़िल्म नहीं बनती थी उसी इंडस्ट्रीज में आज इतनी या इससे कहीं ज्यादा पारिश्रमिक तो फ़िल्म के हीरो ले लेते हैं । 20 साल पहले जितनी लागत में 20 फिल्में बनती थी आज उतनी लागत में एक फिल्में बनती है ।  आज भोजपुरी तकनिकी रूप से भी मजबूत है , कलाकारों की विश्वव्यापी पहचान बन रही है फिर उनके गिरते स्तर वाले सवाल का इशारा किस ओर है यह समझ से परे है  । मैं अक्सर फिल्मो के प्रोमोशन के लिए बिहार के विभिन्न शहरो में जाता हूँ और कलाकारों को मीडिया कर्मियों से रूबरू कराता रहता हूँ । एक कॉमन सवाल कलाकारों से हर जगह रहता है - भोजपुरी में बढ़ती अश्लीलता पर आप क्या कहना चाहेंगे ? एक बार इस सवाल पर दैनिक जागरण मुजफ्फरपुर के स्थानीय संपादक से एक कलाकार ने पूछा की क्या आपने हाल फिलहाल कोई भोजपुरी फ़िल्म देखी है ? उनका जवाब था नहीं फुर्सत ही कहा है । बरसो पहले नदिया के पार देखी थी । यहां मेरा इन मुद्दों को उठाने का मकसद बहुत ही साफ़ है । दरअसल पूरा मामला भोजपुरी फिल्मो का अन्य फ़िल्म जगत से खासकर तुलना से है । आज कोई भी निर्माता अगर कोई फ़िल्म बनाना शुरू करता है और अगर उनका हीरो कोई जांवाज पुलिस वाला होता है तो फटाक से अपने पी आर ओ को कहता है मेरा हीरो सिंघम वाला अजय देवगन है । पी आर ओ साहब तुरत न्यूज़ बना कर सोशल मीडिया पर चिपका देते हैं भोजपुरिया सिंघम लेकर आ रहे हैं निर्माता । निर्माता फेसबुक पर अपनी न्यूज़ और फोटो देखकर फुला नहीं समाता और उसे लगता है की सचमुच सिंघम बना रहे हैं । कई कई बार तो हद की पराकाष्ठा हो जाती है किसी भी भोजपुरी फ़िल्म की तुलना उस हिंदी फ़िल्म से कर दी जाती है जिसका एक दिन का कलेक्शन भोजपुरी फ़िल्म जगत के एक साल के कलेक्शन से कहीं अधिक होता है । जो लोग भोजपुरी फ़िल्म नहीं देखते और सोशल मीडिया और इंटरनेट पर इस तरह की खबर पढ़ते हैं उन्हें लगता है भोजपुरी की फसल बहुत लहलहा रही है लेकिन वही इंसान जब भोजपुरी फ़िल्मी गानों के नाम पर किसी अल्बम के गंदे गाने यु ट्यूब पर देखता है तो उसे लगता है की इसका स्तर गिर रहा है । भोजपुरी फिल्मो के स्तर में लगातार बढ़ोतरी हुई है लेकिन गलत बयानी और पूर्वाग्रह की वजह से इस फ़िल्म जगत पर अनर्गल आरोप लगते रहते हैं और इसके लिए जिम्मेवार भी हम खुद हैं जो मात्र क्षणिक वाहवाही लूटने के चक्कर में सूरज की तुलना भभकते दिए से कर देते हैं । जिन्होंने सिर्फ सूरज को देखा है वो अनुमान लगाते हैं और जिन्होंने सूरज और दिए दोनों को देखा है उनकी नज़रो में हम हंसी के पात्र बन जाते हैं । वक्त आ गया है सँभालने का , खुद की चाल चलने का वरना हम पिछलग्गू थे और पिछलग्गू ही बने रहेंगे ।


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