Wednesday, January 17, 2018

आलोचना या पूर्वाग्रह ?

   
इन दिनों भोजपुरी फ़िल्म जगत की जितनी आलोचना सोशल मीडिया पर हो रही है उतनी आलोचना पहले कभी नही हुई । कुछ को यकायक यहां अश्लीलता नजर आने लगी है तो कुछ को यहां के कलाकारों से तकलीफ हो गई और तो और अगर कुछ नही मिला तो सूत्रों के हवाले से मनगढ़ंत बाते सोशल मीडिया पर लिखी जाने लगी । इस मे सबसे दिलचस्प बात तो ये है कि अधिकतर आलोचक कभी ना कभी किसी बहाने इस फ़िल्म जगत का हिस्सा रहे हैं । भोजपुरी फ़िल्म जगत पर जो सर्वाधिक आरोप लगते हैं वह है अश्लीलता का । इसमें कोई राय नही है कि भोजपुरी की अधिकतर फिल्मे मसाला फिल्मो की श्रेणी में आती है , कुछेक फ़िल्म ही पूरी तरह से साफ सुथरी होती है । रही बात मसाला फिल्मो की तो उसमें भी उतनी अश्लीलता नही होती है जितनी कि आलोचकों द्वारा कही जाती है । सोशल मीडिया पर दो तरह के लोग हैं पहले वो जिसे भोजपुरी फ़िल्म को भोजपुरी संस्कृति से जोड़ कर देखते हैं और उनका मानना है कि यह उनकी संस्कृति को नष्ट कर रहा है । एक दूसरा वर्ग है जो फिल्मो को विशुद्ध मनोरंजन मानता है । इन्ही दो विचारधारा की टकराव से सोशल मीडिया पर हंगामा होता है । इस हंगामे में शामिल कुछ लोग तो ऐसे भी हैं जिन्हें मात्र अपनी उपयोगिता साबित करनी होती है , अपनी मौजूदगी का एहसास कराना होता है । कुल मिलाकर आलोचना करने वाले सभी लोग कही ना कहीं और कभी ना कभी इसी इंडस्ट्रीज का हिस्सा रहे हैं । जाहिर है उन्हें जानकारी जरूर होगी और आज भी वे किसी ना किसी के घनिष्ठ जरूर होंगे । हाल ही में गुमनामी में जी रहे एक प्रचारक की अंतरात्मा जागी और उन्होंने फेसबुक पर एक अभियान शुरू किया । दो  साल तक गुमनाम रहने के बाद उन्होंने भोजपुरी फ़िल्म जगत के खिलाफ अभियान की शुरुआत कर दी । उनका अभियान पूरी तरह से मनगढ़ंत सूत्रों के हवाले से रहता है और उन्होंने अपने दायरे में  कुछ लोगो को   शामिल कर लिया है । यानि टारगेट आलोचना । यहां कोई उनका भगवान है तो कोई फ्लॉप फ़िल्म उनकी नजर में हिट है पर जिन पर टारगेट है उनका अच्छा काम भी बुरा लगता है । कुछ नाकाम लोगो का साथ भी उन्हें मिल गया है जो उनके एसमैन की तरह उनकी हाँ में हां मिलाते हैं । वो इकलौते ऐसे आलोचक नही है बल्कि लगभग जितने भी आलोचक है वो सिस्टम की कम व्यक्तिगत आलोचना अधिक करते हैं और व्यक्तिगत आलोचना हमेशा पूर्वाग्रह से ग्रसित होता है ।
कुल मिलाकर यही कहा जा सकता है कि भोजपुरी फ़िल्म जगत में आलोचना या तारीफ भी पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर किया जाता है ।

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